उपलब्धिः नैनीताल की दिवा साह ने रचा इतिहास! फिल्म ‘बहादुर द ब्रेव’ को मिला ऐतिहासिक पुरुस्कार, पढ़ें नेपाली प्रवासी मजदूरों पर आधारित मार्मिक कहानी

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नैनीताल। सरोवर नगरी नैनीताल की दिवा साह को 71वा सैन सेबेस्टियन अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव में उनकी फिल्म “बहादुर द ब्रेव” के लिए न्यू डाइरेक्टर का पुरुस्कार मिला है। दिवा न्यू डाइरेक्टर का ये पुरुस्कार जीतने वाली पहली भारतीय महिला निर्देशक है।दिवा ने नैनीताल ही नही बल्कि पूरे उत्तराखंड का नाम विश्वपटल पर प्रसिद्ध कर सभी को गौरवांवित किया। 71वा सैन सेबेस्टियन अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव की ज्यूरी अध्यक्ष एमिली मॉर्गन ने बताया कि दिवा की फ़िल्म बहादुर -द ब्रेव एक विलक्षण और सामाजिक दृष्टि से बेहद मर्मस्पर्शी फ़िल्म है,उन्होंने बताया कि कुत्क्साबैंक-न्यू डायरेक्टर्स पुरस्कार की जूरी ने फैसला किया कि कुत्क्साबैंक-न्यू डायरेक्टर्स पुरस्कार दिवा शाह की फ़िल्म ‘बहादुर द ब्रेव’ को दिया जाए।

दिवा की फ़िल्म बहादुर द ब्रेव ने इतिहास रच दिया, और साबित किया कि छोटे शहर में भी अद्भुत प्रतिभा है। दिवा द्वारा निर्देशित फिल्म बहादुर द ब्रेव को हरध्यान फिल्म्स द्वारा निर्मित किया गया है। 23 सितंबर 2023 को फ़िल्म का वर्ल्ड प्रीमियम विश्वेश सिंह सहरावत और सिनाई पिक्चर्स थॉमस अजय अब्राहम द्वारा किया गया था, प्रीमियम इतना शानदार रहा कि कई देर तक तालियों की गड़गड़ाहट गूंजती रही।

दिवा साह द्वारा निर्देशित बहादुर द ब्रेव फ़िल्म नेपाली प्रवासी मजदूरों पर आधारित एक मार्मिक कहानी है जो कोविड महामारी के दौरान उन पर आए संकट, उनकी मेहनत से उस विषम परिस्थितियों से उभरने और महामारी के दौरान लोगो के काम आने पर बनाई गई है। दिवा बताती है कि जिस समय पूरी दुनिया कोरोना वायरस की वजह से महामारी झेल रही थी और हर जगह लॉक डाउन लगा था, तब हर कोई किसी न किसी तरह अपने घर पहुंचने की कोशिश करता रहा, लेकिन नेपाली मजदूर ऊंची पहाड़ियों पर अपनी कंधों पर भारी बोझ लादकर भी काम करते।

लॉक डाउन के समय जब हम सब घरों में सुरक्षित बैठे थे तब ये नेपाली मजदूर ज़रूरत का हर समान अपने कंधों पर लादकर सबके घरों तक पहुंचाते रहे। बहादुर द ब्रेव प्रवासी नेपाली मजदूरों के संघर्ष और कठिन हालातो पर बनी एक सच्ची कहानी है। न्यू डाइरेक्टर का पुरुस्कार मिलने पर दिवा कहती है कि अवार्ड सिर्फ हमारी फ़िल्म की मान्यता नही है बल्कि सच्ची कहानी कहने की स्थायी शक्ति का प्रमाण है।

इस मौके पर दिवा ने नैनीताल वासियों, अपने (माता पिता) शालिनी साह और राजेश साह अपने मित्रों और सहयोग करने वाले सभी लोगो का आभार प्रकट किया। उन्होंने हरध्यान फिल्म्स, विश्वेश सिंह सहरावत, अंकुश प्रशांत मोरे के कला निर्देशन, कोमल रावल की ड्रेस डिजाइनिंग, विराज जुंजाराओ के एडिटिंग, राकेश जनार्दन थॉमस अजय अब्राहम और जिष्णु देव द्वारा स्पेशल साउंड इफेक्ट्स के लिए आभार प्रकट किया।

उन्होंने फिल्म में नवोदित अभिनेता रूपेश लामा और राहुल नवाज, भगत, अनुपम लांबा का भी आभार प्रकट किया। बता दें कि दिवा ने यूनाइटेड किंगडम के डरहम विश्वविद्यालय से रचनात्मक लेखन में स्नातकोत्तर किया है। उन्होंने गार्गी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी ऑनर्स किया। उन्होंने 11वीं और 12वीं समर वैली स्कूल, देहरादून से की,इससे पहले उन्होंने ऑल सेंट्स कॉलेज नैनीताल से हाई स्कूल किया।

1953 में हुई वार्षिक फिल्म फेस्टिवल की शुरूआत
सैन सेबेस्टियन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (स्पेनिश: फेस्टिवल इंटरनेशियल डी सिने डे सैन सेबेस्टियन; बास्क: डोनोस्टियाको ज़िनेमाल्डिया) एक वार्षिक फिल्म फेस्टिवल है जिसकी शुरुआत 1953 में हुई थी और यह स्पेनिश शहर सैन सेबेस्टियन (आधिकारिक तौर पर डोनोस्टिया-सैन) में आयोजित किया जाता है। हालाँकि इस महोत्सव का उद्देश्य मूल रूप से स्पेनिश भाषा की फिल्मों का सम्मान करना था, 1950 के दशक के अंत में अन्य भाषाओं की फिल्में विचार के लिए पात्र बन गईं। अधिकांश पुरस्कार जूरी द्वारा निर्धारित किए जाते हैं, लेकिन सबसे लोकप्रिय फिल्म के लिए एक दर्शक पुरस्कार भी दिया जाता है। मुख्य पुरस्कार गोल्डन शेल और सिल्वर शेल हैं। हर साल महोत्सव एक, दो या तीन अभिनेताओं को डोनोस्टिया लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित करता है।


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