पीएम मोदी ने रविवार को पूजा पाठ कर संसद भवन की नई इमारत पर राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न का अनावरण किया है। इसका आवरण होते ही यह चर्चा का विषय बन गया। इसको लेकर विपक्ष का कहना है कि राष्ट्रीय प्रतीक में फेरबदल किया गया है। इसमें बने हुए शेर सारनाथ में स्थित स्तंभ से अलग हैं। कई नेताओं का तो यह भी कहना है कि सेंट्रल विस्टा की छत पर स्थापित राष्ट्रीय प्रतीक के शेर आक्रामक मुद्रा में नजर आते हैं जबकि ओरिजिनल स्तंभ के शेर शांत मुद्रा में हैं। यह विवाद टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा के ट्वीट के बाद शुरू हो गया जब उन्होंने कहा कि अब सत्यमेव जयते से सिंहमेव जयते की ओर जा रहे हैं।
यह है इसका इतिहास- आपको बता दें कि सम्राट अशोक मौर्य वंश के तीसरे शासक थे। उन्हें सबसे शक्तिशाली शासकों में गिना जजाता है। उनका जन्म 304 ईसा पूर्व हुआ था। उनका साम्राज्य तक्षशिला से लेकर मैसूर तक फैला हुआ था। पूर्व में बांग्लादेश से पश्चिम में ईरान तक उनका राज्य था। सम्राट अशोक ने अपने साम्राज्य में कई जगहों पर स्तंभ स्थापित करवाकर यह संदेश दिया था कि यह राज्य हमारे अधीन है। कई जगहों पर अशोक के बनवाए स्तंभ मिले हैं जिनमें शेर की आकृति बनी है। लेकिन सारनाथ और सांची में उनके स्तंभ में शेर शांत दिखते हैं। माना जाता है कि ये दोनों प्रतीक उनके बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद बनवाए गए।