गीतांजलि श्री ने उपन्यास के लिए वर्ष 2022 का अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीत कर इतिहास रच दिया है। पहली बार भारतीय भाषा की पुस्तक को बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। गीतांजलि को यह पुरस्कार उनके हिन्दी उपन्यास के अंग्रेजी अनुवाद ‘टूम आफ सैंड’ के लिए दिया गया है। यह पुस्तक उनके मूल हिंदी उपन्यास ‘रेत समाधि’ का अंग्रेजी अनुवाद है। लेखिका गीतांजलि श्री को लंदन में आयोजित एक समारोह में इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से नवाजा गया। गीतांजलि ने हिंदी भाषा की पहली पुस्तक को बुकर पुरस्कार मिलने पर आभार और प्रसन्नता जताई है। उन्होंने कहा कि मैंने कभी बुकर का सपना नही देखा था, सोचा भी नही था कि मैं यह अवार्ड जीत सकती हूं।
आपको बताते चलें कि गीतांजलि श्री की यह पुस्तक 2018 में मूल रूप से हिंदी में ‘रेत समाधि’ के नाम से प्रकाशित हुई थी। इसका अंग्रेजी अनुवाद ‘टूम आफ सैंड’ डेजी राकवेल ने किया है। जूरी के सदस्यों ने इसे ‘शानदार और अकाट्य’ बताया। इस पुरस्कार के तहत 50,000 पाउंड (करीब 50 लाख रुपये) दिए गए, जो गीतांजलि ने उपन्यास का अंग्रेजी अनुवाद करने वाली डेजी राकवेल के साथ समान रूप से साझा किया। गौरतलब हो कि इससे पहले भारतीय लेखिका अरुंधति राय को उनके अंग्रेजी उपन्यास ‘गाड आफ स्माल थिंग्स’ के लिए बुकर पुरस्कार से नवाजा गया था।
भारत के विभाजन पर आधारित
‘टूम आफ सैंड’ भारत के विभाजन की त्रासदी को रेखांकित करती 80 वर्षीय उस महिला की कहानी है, जो अपने परिवार की व्याकुलता के कारण पाकिस्तान की यात्र करती है और किशोर उम्र के अपने अनुभवों के अनसुलझे आघातों का सामना करती है। साथ ही साथ एक मां, एक बेटी होने का क्या मतलब है, इसका पुर्नमूल्यांकन करती है।
लेखिका गीतांजलि श्री का उपन्यास ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’ पिछले महीने अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार के लिए ‘शॉर्टलिस्ट’ किया गया था। वहीं गीतांजलि श्री की यह पुस्तक मूल रूप से हिंदी में ‘रेत समाधि’ के नाम से प्रकाशित हुई थी। जिसका अंग्रेजी अनुवाद ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’, डेजी रॉकवेल ने किया है और जूरी के सदस्यों ने इसे ‘शानदार और अकाट्य’ बताया था।