प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार देश में मोटे अनाज ज्वार, बाजरा और रागी जैसी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने की अपील कर चुके हैं। उन्होंने रविवार को एक बार और अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में इनको बढ़ावा देने के लिए जन-आंदोलन चलाने की बात कही। पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि इससे को कुपोषण दूर किया जा सकता है तो वहीं डायबिटीज़ और हाइपरटेंशन जैसी बीमारियों से लड़ने में भी ये कारगर हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि जहां सिंचाई के साधन कम हैं, वहां भी इनकी पैदावार हो सकती है। इससे सूखे के हालात से निपटने में मदद मिलेगी और भूजल पर दबाव भी कम होगा।
इन मोटे अनाजों को मिलेट्स या फिर सुपर फूड भी कहा जाता है। इसका अर्थ उन खाद्य पदार्थों से होता है, जिनमें पोषक तत्व अपेक्षाकृत अधिक होते हैं और ग्लाइसेमिक लोड भी कम होता है। इन फसलों में मुख्य रूप से 8 अनाजों ज्वार, बाजरा, रागी, सावां, कंगनी, चीना, कोदो, कुटकी और कुट्टू को शामिल किया जाता है। इनमें गेहूं और चावल की तुलमा में सॉल्युबल फाइबर ज़्यादा होता है। इसके चलते इन्हें डायबिटीज, हाइपरटेंशन जैसी बीमारियों में खाना उपयोगी माना जाता है। इसके अलावा आयरन की मात्रा भी इनमें ज्यादा होती है। इसका मतलब यह हुआ कि इन फूड्स के जरिए एक तऱफ पैदावार बेहतर हो सकती है तो वहीं लोगों को कुपोषण और बीमारियों से भी राहत मिलेगी।
बीते करीब दो दशकों से दुनिया जलवायु परिवर्तन की मार से जूझ रही है। इसके चलते कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा जैसे हालात देखने को मिलते हैं। भारत, पाकिस्तान समेत एशिया के ही कई देश हर साल असमान बारिश का सामना करते हैं। ऐसे में इन फसलों के जरिए असमान बारिश के संकट से निपटा जा सकता है। ऐसी समस्याओं के बीच मिलेट्स क्रॉप एक समाधान की तरह दिखती हैं। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि इन फसलों के उत्पादन में पानी की खपत भी बेहद कम होती है। जैसे गन्ने के एक पौधे को अपने पूरे जीवनकाल में 2100 मिलीमीटर पानी की ज़रूरत होती है। वहीं बाजरा को 350 मिलीमीटर पानी ही चाहिए। ज्वार के लिए भी पानी ज्यादा नहीं लगता।
इसके अलावा एक अहम फायदा यह है कि मिलेट्स की फसलें पशुओं के लिए चारा भी मुहैया कराती हैं। ऐसे में पीएम नरेंद्र मोदी की अपील काफी अहम है। इस पर दुनिया भी कितनी गंभीरता से सोचती है, इसे ऐसे समझा जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी 2023 को ‘अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष’ घोषित किया है। इन फसलों को उगाने का एक फायदा यह भी है कि सिंचाई से लेकर रखरखाव तक इन फसलों का उत्पादन करना भी कम मेहनत वाला है।