बीते दिनों दिल्ली में एक ऐसी घटना हुई है जिस घटना ने सबका ध्यान खींचा। यहां एक व्यक्ति के गले में मोमोज फंसने से उसकी मौत हो गई है। एम्स के अनुसार, देश में यह पहला मामला था, जिसमें किसी व्यक्ति के विंड पाइप में मोमोज फंसने से मौत हुई है। इसके बाद फास्ट फूड्स को लेकर बहस नए सिरे से छिड़ गई है, क्योंकि सेहत को उनसे पहुंच रहे नुकसान की चर्चा तो लंबे समय से चली आ रही है। अब इससे तत्काल जान पर बन आने का खतरा उठ खड़ा हुआ है।
फास्ट फूड में मोमोज के अलावा नूडल्स भी काफी लोकप्रिय हैं। उसके बारे में कहा जाता है कि यह खाने में स्वादिष्ट इसलिए लगते हैं, क्योंकि उसमें मिलाया जाने वाला रंग रसायन स्वादग्राही कोशिकाओं को भ्रमित कर देता है। इस रसायन से नूडल्स अधिक समय तक ताजा बना रहता है। लंबे समय तक नूडल्स के सेवन से स्वादग्राही कोशिकाएं अपनी नैसर्गिक शक्ति खो देती हैं। परिणामत: भूख न लगने की बीमारी हो जाती है।
स्वाद बढ़ाने और भोजन को तरोताजा रखने वाला यह अजीनोमोटो नामक रसायन दुकानों में सहजता से उपलब्ध है। भोजन में स्वाद को बढ़ाने वाले सैकरीन, साइक्लोमेट, एमेसल्फ तीनों कैंसर का कारक माने गए हैं। मैसुरु स्थित फूड टेक्नोलाजी रिसर्च इंस्टीट्यूट के अध्ययन में पाया गया है कि भारत में प्रयुक्त फास्ट फूड में डीडीए, बीएचसी तथा मेलाथियान जैसे कीटनाशक रसायनों की मात्र मानव की सहन सीमा से अधिक है। फास्ट फूड और डिब्बाबंद खाद्य स्वास्थ्य को चौपट कर रहे हैं।
यही कारण है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि आहार संस्कृति नहीं सुधारी गई तो 2030 तक दुनिया के सभी देशों में कैंसर व अन्य घातक रोगों से ग्रस्त लोगों की संख्या बहुत ज्यादा होगी। भारतीयों में तो डायबिटीज के मामले कुछ ज्यादा बढ़ रहे हैं। बच्चे फास्ट फूड की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं। इन्हें जीवनस्तर से भी जोड़कर देखा जाने लगा है।
अधिकांश फास्ट फूड में विटामिन सी, आयरन फोलेट और रिबोफ्लोविन की कमी होती है। क्रीम होने से कैलोरी, वसा और सोडियम की मात्र अधिक होती है। शरीर के लिए जो पोषक तत्व होने चाहिए, उनका इनमें अभाव होता है। इससे पाचन तंत्र कमजोर होता है। साथ ही ये आहार भारतीय मौसम, परिस्थिति और संस्कृति के भी विपरीत हैं। हमारे यहां ऊष्ण आर्द्र मौसम रहता है। इस मौसम में प्राकृतिक, सुपाच्य और स्वाभाविक स्वाद वाली देशज वस्तुएं ही भोजन का हिस्सा होनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा।हमारे यहां एक तरफ कुपोषण के शिकार बच्चे हैं, तो दूसरी तरफ फास्ट फूड से बीमार बच्चे हैं। ऐसे में देश का भविष्य कैसा होगा? लिहाजा समझना होगा कि फास्ट फूड बच्चों का स्थायी आहार कभी न बने। अन्यथा उनका भविष्य चौपट हो सकता है।