कुमाऊं यूनिवर्सिटी में अवैध नियुक्ति ने पूरे किए नौकरी के बारह साल! वीसी की महिमा से पाया परीक्षा नियंत्रक का पद

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उत्तराखंड की शान कही जाने वाली कुमाऊं यूनिवर्सिटी आज अवैध नियुक्तियों को लेकर विवादों में घिर चुकी है। इस यूनिवर्सिटी में एक नहीं, दो नहीं बल्कि दर्जनों अपॉइंटमेंट्स मानकों को ताक में रखकर किए गए हैं। खास बात ये है कि कई अपॉइंटमेंट्स दशकों पुराने हैं जिनमें कुछ प्रोफेसर रिटायर होकर घर जा चुके हैं और कई आज भी मजे में नौकरी कर रहे हैं।

आज हम एक ऐसे अपॉइंटमेंट का पर्दाफाश करने जा रहे हैं जिस पर वर्तमान कुलपति प्रोफेसर दीवान सिंह रावत की खास मेहरबानी है और वो कोई और नहीं बल्कि डॉ. महेंद्र सिंह राणा हैं जो कि वर्तमान में कुमाऊं यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर हैं और वीसी दीवान सिंह रावत की मेहरबानी से यूनिवर्सिटी के बेहद संवेदनशील पद परीक्षा नियंत्रक पर आसीन हैं। साल 2011 और 12 में डॉ. राणा की नियुक्ति को एक नहीं बल्कि दो बार चांसलर कैंसिल कर चुके हैं और मामला हाईकोर्ट में सुनवाई के बिना पिछले बारह सालों से लटका हुआ है। फार्मेसी विभाग जिसमें फर्मास्युटिक्स, फ़ार्मास्युटिकल्स केमेस्ट्री, फ़ार्माकोलॉजी और फार्माकॉगनोसी चार स्पेसिलाइजेशन मुख्य हैं। इन चारों क्षेत्रों में नियुक्ति के लिए अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद ए.आई.सी.टी. ई और पी.सी.आई के नियम निर्धारित हैं, जिनमें असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए किसी एक स्पेसिलाइजेशन में मास्टर डिग्री होनी जरूरी है। चांसलर के आदेश के अनुसार डॉ. महेंद्र सिंह राणा को नियमों के विरूद्ध नियुक्त करने के लिए कुमाऊं यूनिवर्सिटी ने 21 अप्रैल 2010 को संशोधित विज्ञापन में फार्मेसी विभाग में नियुक्ति निकाली थी, जिसमें ए.आई.सी.टी.ई और पी.सी.आई के मानकों को दरकिनार कर स्पेसिलाइजेशन ही हटा दिया गया, क्योंकि डॉ. महेंद्र सिंह राणा की मास्टर डिग्री फार्माकॉगनोसी में थी और इस विभाग में पहले से दो प्रवक्ता डॉ. कुमुद उपाध्याय और डॉ. अर्चना नेगी शाह मौजूद थे, जबकि अन्य स्पेसिलाइजेशन में एक एक प्रवक्ता कार्यरत थे। यूनिवर्सिटी में पहले भी फार्मेसी विभाग में हुई सभी नियुक्तियों में स्पेसिलाइजेशन लागू था। साथ ही इस बात का जिक्र किया गया था कि नए आवेदनों में भी स्पेसिलाइजेशन लागू रहेगा। वर्ष 2010 के दौरान कुमाऊं यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर वी. पी. एस. अरोरा थे जिनके कार्यकाल में कुमाऊं यूनिवर्सिटी में नियुक्तियां निकाली गई थी।

फार्मेसी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर की पोस्ट के लिए महेंद्र सिंह राणा और डॉ. संगीता पिलख्वाल ने आवेदन किया, जिसके बाद महेंद्र सिंह राणा को लाभ पहुंचाने के लिए कुमाऊं यूनिवर्सिटी की चयन समिति ने पीएचडी के मार्क्स भी जुड़वा दिए, जबकि आवेदन की अंतिम तारीख तक महेंद्र सिंह राणा की पीएचडी पूरी ही नहीं हुई थी। इसके बावजूद भी सारी जोड़ तोड़ लगाने के बाद महेंद्र सिंह राणा की एकेडमिक क्वालिफ़िकेशन से डॉ. संगीता पिलख्वाल कहीं आगे थीं, लेकिन इंटरव्यू में चयन समिति ने डॉ. संगीता पिलख्वाल को कम नंबर देकर बाहर कर दिया और अवैध तरीके से महेंद्र सिंह राणा का चयन कर लिया। जिसके बाद डॉ. संगीता पिलख्वाल ने यूनिवर्सिटी की चांसलर मार्गेट अल्वा को शिकायत की, जिसपर चांसलर ने सभी तथ्यों और मानकों को देखते हुए 11 अगस्त 2011 को महेंद्र सिंह राणा की नियुक्ति को निरस्त करने के आदेश जारी कर दिए। जिसके बाद इस आदेश को चैलेंज करने के लिए महेंद्र सिंह राणा हाईकोर्ट पहुंचे और हाईकोर्ट ने इस प्रकरण पर चांसलर को महेंद्र सिंह राणा का पक्ष सुनने को निर्देशित किया, जिसके बाद महेंद्र सिंह राणा ने चांसलर मार्गेट अल्वा को दिए बयान में कहा कि असिस्टेंट प्रोफेसर पर उनका चयन नियम के अनुसार हुआ है और सब्जेक्ट स्पेसिलाइजेशन का मुद्दा ही नहीं है, क्योंकि सब्जेक्ट स्पेसिलाइजेशन का जिक्र ए. आई. सी. टी. ई, पी. सी. आई और यू. जी. सी में नहीं है। साथ ही महेंद्र सिंह राणा ने एक अन्य नियुक्ति को अवैध बताते हुए कहा कि डॉ. अर्चना नेगी शाह का स्पेसिलाइजेशन हर्बल ड्रग टेक्नॉलाजी में है और डॉ. अर्चना की नियुक्ति फार्माकॉगनोसी में हुई है। महेंद्र सिंह राणा के बयानों पर चांसलर मार्गेट अल्वा ने अपने आदेश में लिखा कि 17 अक्टूबर 2011 में महेंद्र सिंह राणा के द्वारा दिए गए अटैचमेंट में साफ तौर पर ए. आई. सी. टी. ई और यू. जी. सी के नियमों का उल्लेख है जिसके अनुसार संबंधित विभाग में नियुक्ति के लिए सब्जेक्ट स्पेसिलाइजेशन में मास्टर डिग्री का होना जरूरी है। चांसलर मार्गेट अल्वा ने अपने आदेश कहा कि हर्बल ड्रग टेक्नोलॉजी और फार्माकॉगनोसी एक ही विभाग है। महेंद्र सिंह राणा के द्वारा किए गए आवेदन की अंतिम तिथि तक उनकी पीएचडी कंप्लीट नहीं थी जिसे यूनिवर्सिटी ने फायदा पहुंचाने की नियत से जल्दबाजी में पीएचडी कंप्लीट करवा दी, जो कि सिद्ध हो चुका है और महेंद्र सिंह राणा इसके खिलाफ कोई भी सबूत पेश नहीं कर पाए हैं। जिसके बाद चांसलर मार्गेट अल्वा ने सभी तथ्यों और मानकों को ध्यान में रखते हुए महेंद्र सिंह राणा की नियुक्ति को अवैध करार दिया और 24 जनवरी 2012 को नियुक्ति निरस्तीकरण के आदेश दोबारा जारी कर दिए। 24 जनवरी 2012 से यह मामला सुनवाई के बिना हाईकोर्ट में लटका हुआ है और हाईकोर्ट में होने के बावजूद वर्तमान कुलपति प्रोफेसर दीवान सिंह रावत ने डॉ. महेंद्र सिंह राणा को परीक्षा नियंत्रक का संवेदनशील पद दे दिया है। यह जानते हुए भी कि मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है। डॉ. महेंद्र सिंह राणा जिन्हें कुमाऊं यूनिवर्सिटी के भीमताल कैंपस के फार्मेसी विभाग में पढ़ाने के लिए होना चाहिए था वो कुलपति की अनुकंपा से नैनीताल में एग्जामइनेशन कंट्रोलर के पद पर मौज काट रहे हैं। दशकों से कुलपति आते गए और जाते गए, लेकिन किसी ने भी अवैध नियुक्तियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की। वर्तमान कुलपति दीवान सिंह रावत तो एक कदम और आगे निकल गए, जो कि संबद्धों और चापलूसी के कारण अवैध नियुक्तियों को निरस्त करने की बजाय प्रमोशन देकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं।

 


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