ल्हासा, एएनआइ। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) की सत्ता के तले तिब्बत के लोगों के हालात लगातार बदतर बने हुए हैं। यहां चल रहे राजनीतिक और धार्मिक अत्याचारों का अंत नहीं हो रहा। तिब्बत प्रेस के अनुसार, सबसे बड़ी बात यह है कि समय के साथ धर्म को और अधिक दबाया जा रहा है। खबर के मुताबिक, तिब्बती बुद्धिज्म पर हो रहे हमले के पीछे चीन का प्रमुख उद्देश्य तिब्बत पर पूरी तरह कब्जा करना है।
उतरवा रहे हैं धार्मिक कपड़े
सख्त नीतियों के तहत भिक्षुओं और भिक्षुणियों को उनके धार्मिक कपड़े उतारकर आम नागरिक की तरह रहने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। असल में इसके पीछे का मुख्य मकसद उन्हें अपने धार्मिक रीतिरिवाजों का पालन करने से रोकना है।
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के एक दिन पहले 9 दिसंबर को वाशिंगटन ने भ्रष्टाचार ओर मानवाधिकार उल्लंघन से जुड़े मामलों के कारण नौ देशों के सैकड़ों लोगों और संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाए। अमेरिकी वित्त विभाग ने उनमें से दो लोगों झांग होंगबो (तिब्बत में चीनी पुलिस के प्रमुख) और वू यिंगजी (प्रोवियंस पार्टी के पूर्व सचिव) पर तिब्बती ऑटोनॉमस रीजन ऑफ चायना (TAR) में मानवाधिकार उल्लंघन के गंभीर आरोप लगाए।
विरोध करने वालों की हो चुकी है मौत
तिब्बत प्रेस के अनुसार, तिब्बत में व्याप्त अशांति के बारे में लिखने के कारण 21 साल की सजा भुगत रहे टूर गाइड कुन्चोक जिन्पा (Kunchok Jinpa) की जनवरी 2021 में जेल में किए गए अत्याचार के कारण लकवा लगने और ब्रेन हैमरेज से मौत हो चुकी है।
19 वर्षीय तिब्बती भिक्षु की हत्या
ह्यूमन राइट्स वॉच के अनुसार, एक 19 वर्षीय तिब्बती भिक्षु, जिसे पहली बार 2019 में गिरफ्तार किया गया था, को अगले साल दोबारा गिरफ्तार किया गया। इस दौरान उसकी पिटाई और अत्याचार के चलते जेल में ही मौत हो गई। तिब्बत की स्वतंत्रता की शांतिपूर्वक वकालत करने के लिए उन्हें पांच साल तक की जेल की सजा वाले अन्य भिक्षुओं के साथ कैद किया गया था। रेडिया फ्री एशिया ने यह भी बताया कि नोरसांग नाम के एक-दूसरे से राजनीतिक कैदी की तिब्बती जेल से रिहा होने के बाद अप्रत्याशित रूप से मौत हो गई, जहां उसे कथित रूप से प्रताड़ित किया गया था। यह घटना 2019 में हुई थी।
दलाई लामा का नहीं लिख सकते नाम
तिब्बत अब अपनी संस्कृति का पालन करने के मामले में भेदभाव का सामना कर रहा है। वे अपनी भाषा का प्रयोग नहीं कर सकते और दलाई लामा का नाम नहीं लिख सकते। तिब्बत प्रेस के अनुसार, पिछले तीस सालों में ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जिसमें लोगों ने चीन के दमकारी रवैये पर दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपनी कुर्बानी दी है।