भारत में हर साल 13 जनवरी को लोहड़ी का दिन मनाया जाता है। लोहड़ी को उत्तरी भारत में किसानों का त्योहार कहा जाता है। यह मकर संक्रांति से एक रात पहले मनाया जाता है।
फसल उत्सव भारत के उत्तर में प्रमुख रूप से मनाया जाता है। त्योहार के दौरान, लोग सूर्य देव, धरती माता, अग्नि और समृद्धि, स्वास्थ्य और अच्छी फसल के लिए खेतों में प्रार्थना करते हैं। वे अलाव के लिए मूंगफली, गुड़ की रेवड़ी और मखाना देते हैं। लोकप्रिय लोक गीत गाते हुए लोग नृत्य करते हैं।
लोहड़ी
लोहड़ी की उत्पत्ति का पता सिंधु घाटी सभ्यता से लगाया जा सकता है। हिंदू सौर कैलेंडर के अनुसार, लोहड़ी पौष माह में आती है, जो 13 जनवरी के आसपास होती है।
पृथ्वी इस समय सूर्य के सबसे निकट है।
त्यौहार आवर्ती सर्दियों और एक नई फसल के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है।
लोहड़ी नई फसल के मौसम का प्रतीक है।
त्योहार को भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। बंगाल में, लोग इसे मकर संक्रांति के रूप में मनाते हैं, असम में, इसे बिहू कहा जाता है, तमिलनाडु में, इसे पोंगल के रूप में जाना जाता है, और केरल में इसे पोंगाला के रूप में जाना जाता है।
मुगलकाल के दौरान पंजाब का एक व्यापारी वहां की लड़कियों और महिलाओं को कुछ पैसे के लालच में बेचने का व्यापार किया करता था।उसके इस आतंक से इलाके मे काफी दहशत का माहौल रहता था और लोग अपनी बहन बेटियों को घर से बाहर नहीं निकलने दिया करते थे।लेकिन वह कुख्यात व्यापारी घरों में घुसकर जबरन महिलाओं और लड़कियों को उठा लिया करता था, महिलाओं और लड़कियों को इस आतंक से बचाने के लिए दुल्ला भाटी नाम के नौजवान शख्स ने उस व्यापारी को कैद कर लिया औऱ उसकी हत्या कर दी। उस कुख्यात व्यापारी का अंत करने और लड़कियों को उससे बचाने के लिए पंजाब में सभी ने दुल्ला भाटी का शुक्रिया अदा किया और तभी से लोहड़ी का पर्व दुल्ला भाटी के याद में मनाया जाता है, उनकी याद में इस दिन लोकगीत भी गाए जाते हैं।
लोहड़ी एवं मकर संक्रांति एक-दूसरे से जुड़े रहने के कारण सांस्कृतिक उत्सव और धार्मिक पर्व का एक अद्भुत त्योहार है। लोहड़ी के दिन जहां शाम के वक्त लकड़ियों की ढेरी पर विशेष पूजा के साथ लोहड़ी जलाई जाएगी, वहीं अगले दिन प्रात: मकर संक्रांति का स्नान करने के बाद उस आग से हाथ सेंकते हुए लोग अपने घरों को आएंगे। इस प्रकार लोहड़ी पर जलाई जाने वाली आग सूर्य के उत्तरायन होने के दिन का पहला विराट एवं सार्वजनिक यज्ञ कहलाता है।