माघ महीने में पूर्णिमा (माघ पूर्णिमा) के दिन पर मनाया जाने वाला गुरु रविदास का जन्मदिवस है।यह रैदास पंथ धर्म का वार्षिक केंद्र बिंदु है। जिस दिन अमृतवाणी गुरु रविदास जी को पढ़ी जाती है, और गुरु के चित्र के साथ नगर में एक संगीत कीर्तन जुलूस निकाला जाता है। इसके अलावा श्रद्धालु पूजन करने के लिए नदी में पवित्र डुबकी लगाते हैं, उसके बाद भवन में लगी उनकी छवि पूजी जाती है। हर साल, गुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर, सीर गोवर्धनपुर, वाराणसी में एक भव्य उत्सव के अवसर पर दुनिया भर से लाखों श्रद्धालुओं आते है।
गुरु रविदास जयंती 15,16वीं शताब्दी के भक्ति आंदोलन के एक रहस्यवादी कवि संत थे और उन्होंने रविदासिया धर्म की स्थापना की थी। गुरु रविदास जयंती उनके जन्म के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। कहा जाता है कि गुरु रविदास ने कई भजन लिखे थे और उनमें से कुछ का जिक्र सिख धर्म की पवित्र पुस्तक, गुरु ग्रंथ साहिब में मिलता है। संत रविदास ने अपनी कालजयी रचनाओं से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में अपनी अहम भूमिका निभाई है।
गुरु रविदास से प्रभावित होकर मीराबाई ने उन्हें अपना गुरु मान लिया था।राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में मीरा के मंदिर के सामने एक छोटी छतरी बनी है, जिसमें संत रविदास के पद चिन्ह दिखाई देते है। संत रविदास की जयंती के अवसर पर उन्हें याद किया जाता है। आज भी करोड़ों लोग संत रविदास को अपना आदर्श मानकर उनकी पूजा करते हैं। इस अवसर पर कई जगह सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।
धर्म में था अधिक विश्वास-
संत रविवास बहुत ही धार्मिक स्वभाव के व्यक्ति थे।इन्होंने आजीविका के लिए अपने पैतृक कार्य को अपनाते हुए हमेशा भगवान की भक्ति में हमेशा ही लीन रहा करते थे। संत रविदास जी, जिन्होंने भगवान की भक्ति में समर्पित होने के साथ अपने सामाजिक और पारिवारिक कर्त्तव्यों का भी बखूबी निर्वहन किया। संत रविदास ने लोगों को प्रेम से रहने और खुशहाली बांटने की शिक्षा दी थी। वे लोगों को हमेशा धर्म पर चलने की शिक्षा देते थे। संत रविदास के पिताजी का नाम रघू और माताजी का नाम घुरविनिया था।
विकास पाठक
संपादक