उत्तराखंड: सीयूईटी से एडमिशन की बाध्यता शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन! एसोसिएशन ने किया धमाकेदार खुलासा

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उत्तराखंड में इन दिनों गढ़वाल केंद्रीय विवि में प्रवेश को लेकर बवाल मचा है। गढ़वाल केंद्रीय विवि में सीयूईटी के द्वारा प्रवेश में तमाम दिक्कतों के कारण छात्र आंदोलित हैं। वो केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय से गढ़वाल विवि में सीयूईटी में ढिलाई देने या फिर उत्तराखंड के छात्रों को 50 फीसदी आरक्षण देने की मांग कर रहे हैं। इधर एसोसिएशन ऑफ सेल्फ फाइनेंस इंस्टीट्यूशन उत्तराखंड ने सीयूईटी को लेकर धमाकेदार खुलासा किया है।

एसोसिएशन ऑफ सेल्फ फाइनेंस इंस्टीट्यूशन उत्तराखंड ने गढ़वाल विश्वविद्यालय की कुलपति के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि शिक्षा छात्रों का मौलिक अधिकार है. शिक्षा से किसी को वंचित नहीं किया जा सकता है। उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में हुई सुनवाई का हवाला देते हुए कहा कि इससे शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन होता है। एसोसिएशन ऑफ सेल्फ फाइनेंस इंस्टीट्यूटशन उत्तराखंड के अध्यक्ष सुनील अग्रवाल ने कहा कि सीयूईटी के संबंध में 28 अगस्त को ही दिल्ली हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा एवं जस्टिस संजीव नरूला की खंडपीठ के समक्ष दिल्ली यूनिवर्सिटी के एलएलबी प्रवेश की एक अधिसूचना पर एक जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई में केंद्र सरकार की स्टैंडिंग काउंसिल ने यह स्वीकार किया कि सीयूईटी (कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट-अंडरग्रेजुएट) सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए बाध्यता नहीं है। प्रवेश में विश्वविद्यालय को पूर्ण स्वायत्तता प्राप्त है. उन्होंने जनहित याचिका का हवाला देते हुए कहा कि याचिका में कहा गया था की सीयूईटी से एडमिशन की बाध्यता से संविधान के आर्टिकल 14 समानता के अधिकार एवं संविधान के आर्टिकल 21 शिक्षा का अधिकार का उल्लंघन होता है। माननीय कोर्ट में केंद्र सरकार की स्वीकारोक्ति अपने आप में सिद्ध करती है कि विश्वविद्यालय को प्रवेश के संबंध में पूर्ण स्वायत्तता प्राप्त है और सभी केंद्रीय विश्वविद्यालय इससे प्रवेश देने के लिए बाध्य नहीं हैं। इसके साथ-साथ केंद्र सरकार द्वारा यूजीसी को भेजे गए 15 मार्च 2022 के पत्र द्वारा 10 केंद्रीय विश्वविद्यालयों असम यूनिवर्सिटी, हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय यूनिवर्सिटी, मिजोरम यूनिवर्सिटी, तेजपुर यूनिवर्सिटी, मणिपुर यूनिवर्सिटी, सिक्किम यूनिवर्सिटी, त्रिपुरा यूनिवर्सिटी, राजीव गांधी यूनिवर्सिटी, एनईएचयू यूनिवर्सिटी, नागालैंड यूनिवर्सिटी को जागरूकता और साधनों के अभाव के कारण सीयूईटी की बाध्यता से मुक्त रखने के लिए कहा गया था। वहीं केंद्र सरकार के पत्र में उल्लिखित 10 विश्वविद्यालयों में से कुछ विश्वविद्यालय बिना सीयूईटी के ही छात्रों को प्रवेश दे रहे हैं।

उक्त पत्र में केंद्र सरकार ने स्वयं ही यूजीसी को इन विश्वविद्यालय को CUET की बाध्यता से मुक्त रखने को कहा है. अगर कोई छात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय में बिना सीयूईटी के प्रवेश हेतु सर्च करता है तो उसे दिखाई देता है कि हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय सहित यह 10 विश्वविद्यालय बिना सीयूईटी के छात्रों को प्रवेश दे सकते हैं। ऐसे में गढ़वाल विश्वविद्यालय की कुलपति का बयान भ्रम की स्थिति उत्पन्न करता है। एक तरफ केंद्र सरकार यह मानती है कि विश्वविद्यालय को प्रवेश में पूर्ण स्वायत्तता है। कोर्ट में भी इसे स्वीकार करती है. यूजीसी को पत्र भी भेजती है। दूसरी तरफ गढ़वाल विश्वविद्यालय कि कुलपति कहती हैं कि केंद्र सरकार और यूजीसी ने बिना सीयूईटी (कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट) के प्रवेश को मना कर दिया है। छात्रों से ही कॉलेज और विश्वविद्यालय हैं। इसलिए छात्रों के शिक्षा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन संविधान का उल्लंघन है। कुलपति से यह उम्मीद है कि वह छात्र हित में निर्णय लेंगी।


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