उत्तरकाशी। भगवान भोले शंकर की भूमी उत्तरकाशी में अष्टादश महापुराण समिति के तत्वावधान आयोजित होने वाले अष्टोत्तरशत श्रीमद्भागवत कथा महापुराण व विष्णु हवनात्मक यज्ञ के लिए भागीरथी के पावन एवं सुरम्य तट पर अवस्थित विश्वनाथ नगरी उत्तरकाशी में आमन्त्रित देवडोलियों की उपस्थिति में भव्य व दिव्य कलश यात्रा निकाली गई। जिसमें हरि महाराज, कंडार देवता, नाग देवता, नागणी माता, खंडद्वारी देवी सहित जिले की कई देवडोलियां शामिल रही। मणिकर्णिका घाट पर विधिवत पूजा-अर्चना के पश्चात पवित्र गंगाजल भरकर काली कमली के रास्ते से बस स्टैंड, भैरवचौक तथा विश्वनाथ चौक होकर कलश यात्रा रामलीला मैदान कथा पांडाल में पहुंची। वहां पर 108 व्यास व आमांत्रित देवडोलियों को सम्मानपूर्वक आसान ग्रहण कराया गया। इस अवसर पर समिति के महामंत्री रामगोपाल पैन्यूली ने कहा कि अष्टोत्तरशत श्रीमद्भागवत कथा का प्रारंभ कलश यात्रा के बाद होता है। कलश हमारे जीवन के हर क्षण में काम आता है। जन्म के समय भी कलश स्थापना की जाती है और मरने के समय भी शरीर के साथ कलश विसर्जित किया जाता है। कलश पर रखा नारियल इस बात की शिक्षा देता है कि परिवार के मुखिया को ऊपर से सख्त और अंदर से मुलायम होना चाहिए। इससे जीवन की गाड़ी बेहतर चलती है। कलश के ऊपर रखी जाने वाली माला संदेश देती है कि जिस तरह फूल महकता है उसी प्रकार मनुष्य का जीवन भी दूसरों को सुगंध देने वाला होना चाहिए। यज्ञ व्यवस्थापक आचार्य घनानंद नौटियाल ने कहा ने कहा कि श्रीमद्भागवत कथा के सुनने मात्र से प्राणियों के द्वारा किए गए जीवन भर के व्याधियों व दोषों से मुक्ति मिल जाती है व मनोरथ पूर्ण होते हैं। कथा 23 अप्रैल से 29 अप्रैल 2024 तक चलेगी। प्रतिदिन हवनात्मक यज्ञ, भागवत मूल पारायण तथा मुख्य व्यास डॉ. श्यामसुंदर पाराशर जी महाराज की दिव्यवाणी द्वारा प्रति दिवस दोपहर 1 बजे से 5 बजे तक प्रवचन किये जायेंगे। उन्होंने अधिक से अधिक लोगों से यज्ञ में जुड़ने व सहयोग देने को अपील की। संयोजक प्रेम सिंह पंवार ने बताया कि अष्टोत्तरशत श्रीमद्भागवत कथा के लिए सभी तैयारियां पूरी कर ली गई व जनता जनार्दन से अनुरोध किया कि अधिक से अधिक इस यज्ञ में पधारकर व सहयोग करके पूण्य के भागी बने। समिति के अध्यक्ष हरि सिंह राणा जी ने कहा कि यह यज्ञ विश्व शांति व उत्तरकाशी की समस्त जनमानस के कल्याणार्थ किया जा रहा है। भागवत के द्वारा जीवों में प्रेम तथा सनमार्ग की भावना उत्पन्न होती है। समाज में समरसता कायम होता है तथा फैले हुए दुर्गुण और व्यभिचार को दूर किया जा सकता है।
Vikas Pathak
Editor