उक्यांग नागवा मेघालय के एक क्रान्तिकारी वीर थे। 18वीं शती में मेघालय की पहाड़ियों पर अंग्रेजों का शासन नहीं था। वहां खासी और जयन्तियां जनजातियां स्वतन्त्र रूप से रहती थीं। इस क्षेत्र में आज के बांग्लादेश और सिल्चर के 30 छोटे-छोटे राज्य थे, एक जयन्तियापुर था अंग्रेजों ने जब यहां हमला किया, तो उन्होंने ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति के अन्तर्गत जयन्तियापुर को पहाड़ी और मैदानी भागों में बांट दिया। उन्होंने राजा के बदले उक्यांग नागवा को अपना नेता चुन लिया। उक्यांग ने जनजातीय वीरों की सेना बनाकर जोनोई की ओर बढ़ रहे अंग्रेजों का मुकाबला किया और उन्हें पराजित कर दिया।
उक्यांग शक्तिशाली एवं बलिष्ठ था। उन्हें बाँसुरी से बहुत प्रेम था,जब जयंतियापुर के मैदानी क्षेत्र में अंग्रेजों का अधिकार हो गया, तब उन्होंने पर्वत मालाओं के ऊपर अंग्रेजी सत्ता का शासन स्थापित करने के लिए जोनाई की तरफ बढ़ना शुरू कर दिया। जोनाई राज्य में जब अंग्रेज़ हार गए, तब उन्होंने कूटनीति से लोगों को ईसाई बनाना शुरू कर दिया। इस पर उक्यांग नागवा ने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।
उक्यांग ने योजना बनाकर एक साथ सात स्थानों पर अंग्रेज पर हमला बोला। वनवासी वीरों के पास उनके परम्परागत शस्त्र ही थे वो अचानक आकर हमला करते और फिर पर्वतों में जाकर छिप जाते थे। 20 माह तक लगातार युद्ध चलता रहा। अंग्रेज किसी भी हाल में उक्यांग को जिन्दा या मुर्दा पकड़ना चाहते थे। अंतिम में 30 दिसम्बर 1862 को अंग्रेजों ने मेघालय के वनवासी वीर को सार्वजनिक रूप से जोनोई में ही फांसी दे दी।
विकास पाठक
संपादक