नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह ने साफ की राजनीतिक लकीर की तस्वीर

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नई दिल्ली। नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह के बहिष्कार को लेकर छिड़ी रार ने 2024 के चुनावी महासंग्राम के लिए खेमेबंदी की राजनीतिक लकीर की तस्वीर लगभग साफ कर दी है। राष्ट्रपति को उद्घाटन के लिए नहीं बुलाए जाने के सवाल पर कांग्रेस समेत विपक्षी खेमे के 20 दलों ने जहां आपसी मतभेदों को किनारे रखते हुए एनडीए-भाजपा की राजनीति को चुनौती देने के अपने इरादों का संकेत दे दिया है।

वहीं, एनडीए में शामिल 14 दलों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों नए संसद भवन के उद्घाटन के पक्ष में उतरकर सत्ताधारी गठबंधन की गोलबंदी में किसी संशय की गुंजाइश समाप्त कर दी है। बसपा, वाईएसआर कांग्रेस, बीजद, अकाली दल और टीडीपी सरीखे दलों ने दोनों खेमों से अलग रहते हुए भी समारोह में शामिल होने का एलान कर एनडीए-भाजपा की तरफ अपने झुकाव की ओर साफ इशारा कर दिया है।

देवेगौड़ा ने विपक्षी खेमे से बनाई दूरी!
जबकि हमेशा अपने राजनीतिक विकल्पों को खुला रखने वाले जेडीएस प्रमुख पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने समारोह में आने की घोषणा कर फिलहाल विपक्षी खेमे से दूरी रखने के संकेत दिए हैं। सत्तारूढ़ एनडीए-भाजपा और विपक्षी खेमे के बीच वैसे तो सियासी खेमेबंदी की यह लकीर पहले से ही लगभग साफ थी।

कांग्रेस से असहज रिश्तों के बावजूद भाजपा की वैचारिक धारा के खिलाफ सियासी लड़ाई के चलते सपा, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और भारत राष्ट्र समिति जैसे दलों के लिए विपक्षी एकता की छतरी अपरिहार्य जरूरत है। इसीलिए संवैधानिक मर्यादा के सवालों के बहाने इन दलों ने आपसी मतभेदों को दरकिनार कर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के हाथों नए संसद भवन का उद्घाटन नहीं कराने के विरोध में बहिष्कार की घोषणा कर दी।

वैसे विपक्षी खेमेबंदी की मौजूदा तस्वीर की यह झलक बीते बजट सत्र के दूसरे चरण में तब नजर आयी जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता सूरत की सत्र अदालत का फैसला आने के चौबीस घंटे के अंदर समाप्त कर तत्काल उनको सरकारी आवास छोड़ने का नोटिस जारी किया गया।

इसी के बाद विपक्षी एकता की पहल शुरू हुई और लंबे अर्से बाद संसद से बाहर राजनीतिक मुद्दे पर इन दलों की ओर से मोदी सरकार के खिलाफ संयुक्त रणनीति अपनाई गई है।

क्या विपक्षी खेमेबंदी में शामिल होगी औवेसी की पार्टी?
तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव की पार्टी बीआरएस विपक्षी दलों के संयुक्त बयान का हिस्सा नहीं बनी, मगर उसने भी समारोह का बहिष्कार करने की अलग से घोषणा कर बहिष्कार करने वाले दलों का आंकड़ा 20 पहुंचाते हुए विपक्षी खेमेबंदी का हिस्सा बनने के इरादे जाहिर किए। औवेसी की पार्टी एआइएमआइएम बहिष्कार करने वाला 21वां दल बना, मगर यह तय है कि विपक्ष अपनी खेमेबंदी में उनको शामिल नहीं करेगा।

नए संसद भवन पर विवाद में एनडीए और विपक्षी खेमे से अलग राह पर चलने वाले दलों ने मोदी सरकार का जैसा समर्थन किया है उससे विपक्षी एकता के विस्तार की राजनीतिक सीमाएं भी तय हो गई हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती ने जिस तरह पीएम मोदी के उद्घाटन करने का पूरजोर समर्थन करते हुए बहिष्कार करने वाले विपक्षी दलों को आड़े हाथों लिया है उसका राजनीतिक संकेत साफ है। बसपा विपक्षी खेमेबंदी का हिस्सा नहीं बनेगी।

कांग्रेस सोशल मीडिया विभाग की प्रमुख सुप्रिया श्रीनेत ने बसपा नेत्री के एलान पर दी गई प्रतिक्रिया में इस हकीकत को स्वीकार करते हुए कहा

लगता है फोन पहुंच गया बहनजी के पास, बीएसपी सुप्रीमो मायावती मोदी सरकार के बचाव में मैदान में, यूपी में गठबंधन की तस्वीर थोड़ी और साफ़ हुई।

बसपा के अलावा टीडीपी का रूख भी विपक्ष को निराश करने वाला है, क्योंकि समारोह में शामिल होने की उसकी घोषणा के बाद चंद्रबाबू नायडु के विपक्षी खेमे में आने की रही-सही गुंजाइश खत्म हो गई है। दिलचस्प है कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पूर्व नायडु ने राहुल गांधी के साथ मंच साझा कर भाजपा-एनडीए के खिलाफ ताल ठोकी थी।

इसी तरह जेडीएस चाहे सेक्यूलर सियासत की पैरोकारी करती रही है, मगर देवेगौड़ा के समारोह में शामिल होने के फैसले से साफ है कि विपक्षी खेमबंदी में आने का अभी उनका इरादा नहीं है। कर्नाटक के हालिया चुनाव में कांग्रेस ने जेडीएस को उसके गढ़ में काफी सियासी नुकसान पहुंचाया था।

NDA के साथ खड़ी है BJD
भाजपा के सबसे पुराने घटक रहे अकाली दल ने नाराज होकर एनडीए छोड़ दी थी, मगर उसके रूख का संकेत साफ है कि विपक्षी खेमेबंदी उसके लिए सियासी विकल्प नहीं है, जबकि एनडीए से अलग रहते हुए भी बीते नौ सालों से हर नाजुक मौकों पर भाजपा सरकार का समर्थन करते रहे बीजेडी का एक बार फिर एनडीए के साथ खड़ा होना आश्चर्यजनक नहीं है।


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